पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पांचवा प्रध्याय: कर्मसंन्यासयोग द्वेषादिको जीतकर भयको छोड़ दिया है, उसे प्राणा- यामादि उपयोगी और सहायक होते हैं। अंतः-शौचरहित प्राणायामादि बंधनका एक साधन बनकर मनुष्यको मोहकूपमें अधिक नीचे ले जा सकते हैं-ले जाते हैं, ऐसा बहुतोंका अनुभव है। इससे योगींद्र पतंजलिने यम-नियमको प्रथम स्थान देकर उसके साधकके लिए ही मोक्षमार्गमें प्राणायामादिको सहायक माना है। यम पांच हैं-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह । नियम पांच हैं-शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वरप्रणिधान । भोक्तार यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् । सुहृदं सर्वभूताना ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥२९॥ यज्ञ और तपके भोक्ता, सर्वलोकके महेश्वर और भूतमात्रके हित करनेवाले ऐसे मुझको जानकर (उक्त मुनि) शांति प्राप्त करता है । २९ टिप्पणी--कोई यह न समझे कि इस अध्यायके चौदहवें, पंद्रहवें तथा ऐसे ही दूसरे श्लोकोंका यह श्लोक विरोधी है। ईश्वर सर्वशक्तिमान होते हुए कर्ता- अकर्ता, भोक्ता-अभोक्ता जो कहो सो है और नहीं है। वह अवर्णनीय है। मनुष्यकी भाषासे वह अतीत है । इससे उसमें परस्परविरोधी गुणों और शक्तियोंका भी