पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१३

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फिर दस वर्ष बाद

ठीक दस वर्ष बाद अन्तस्तल का यह तीसरा सस्करण पाठको की सेवा में उपस्थित करके मैं अपने को बडभागी समझता है। इस बार कुछ वेदनाएँ और बढी है। 'वह', 'मा' और 'स्फुट' नवीन जोड दिय गये हैं। इन दस वर्षो मे दूसरे सस्करण के चट्टा काटकर यही पूंँजी बच पाई। सौ कोडी पाई हाजिर है। अगर आपन मानव हृदय पाया है तो इसकी कोई न कोई वेदना आपके अन्तस्तल का अवश्य स्पर्श करेगी तब यदि आपके नेत्रो में जलकण दीख पडे तो इस भाग्यहीन लेखक को स्नेहार्द भाव से स्मरण करना वह, उस समय तक यदि पृथ्वी पर न भी रहा नो आपकी यह स्निग्ध सौगात उस तक पहुँच जायगी।

लाल बाग, दिल्ली-शाहदरा ७|७|४१ (श्रावणी) चतुरसेन