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फी ये शब्द कि-"वैवाहिक जीवन के दो भागीदार---और
दोनों परस्पर निर्भर और विश्वासी" मेरे रक्षक हैं, उन शब्दो मे ही मेरा समस्त जीवन स्वप्न था-और जीवन का कटुतर जीवन उसी से मधुर हो गया था जैसे--मिश्री से औषधि का स्वाद बदल जाता है। एक दिन वे दोनों पुराने हृदय एक ही सम और एक ही स्वर ताल पर फिर विवाह गीति गावेगे।
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