पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१३४

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उस दिन

जिस दिन वह पुण्य पाणिपल्लव हाथ में लेकर मैं कृतार्थ हुआ, और उस प्रथम रहस्य क्षण मे उसने नीरव उल्लास के साथ प्राण पुष्प चुपचाप मेरे चरणों मे धर दिये, तब―विस्मृति ममुद्र मे डूबी हुई, जन्मान्तर-व्यापिनी पूर्व जन्म की सुकृति की एक अस्पष्ट रेखा पल भर को दीख पड़ी। हृदय के अगम्य गर्भ मे जो छिपा था―सहसा एक क्षण मे वह बाहर आ गया। प्राणों से प्राण मिले, खाना, पीना, सोना पढ़ना, विचारना सब भूल गया। बुद्धि और विचार को छुट्टी मिल गई, कानों मे प्रतिक्षण एक गूँँज