पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।


कर सिर हिला देती है। यह हमारा चिर परिचित स्थान--- जहां हमारे हास्य और जीवन का रहस्य नग्न हुए थे प्यासे राक्षस की भांति मेरे रक्त और आंसुओं को पी रहा है।

क्या तुम न आओगी? हाय, यह तुम कैसे सहन करती हो? एक बार आओ, केवल एक बार। मरने से पूर्व एक बार तुम्हारा स्नेह-सुधा पीने और सुखद गोद मे अन्तिम श्वास लेने की अभिलाषा है।

जल्दी, प्रिये, जल्दी। जीवन की लौ जल चुकी है और अब वह बुझ रही है।

१५२