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पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१६७

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आओ

प्रिये, अपने उस स्निग्ध प्यार की एक कण मेरे लिये भेजो। अथवा मुझे मरने दो।

इस सुनसान घर मे सुखद स्मृतियाँ सो रहीं हैं। कभी कभी तुम्हारी अस्पष्ट पद्ध्वनि सुनाई पड़ती है क्या तुम आ रही हो?

प्रतिदिन प्रभात मे उठकर मैं आशा करता हूं कि तुम आओगी। मैं दिन भर प्रतीक्षा करता रहता हूं, रात होती है और मैं प्रतीक्षा करता हूँ। आकाश मे एक अस्पष्ट छाया मुस्कुरा