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पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१७४

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सिर्फं एक बार हँस कर

अस्तंगत सूर्य के रक्ताम्बर में 'धीमे टिमटिमाते तारों के समान उन नेत्रों से एक चितवन फैक कर तुम एक बार हँसी थीं। और तब मैंने अपने जीवन के समस्त उल्लास के साथ दौड़कर कहा था-ठहरो तनिक।

पर तुम ठहरी नहीं। तुम किस लोक में हँसने को चली गई? सिर्फ एक बार हंस कर!!