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पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१८१

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वह अमावस्या

वह अमावस्या, जिसके अन्धकार के भाग्य मे चन्द्र-किरण की एक रेख भी नहीं सिरजी गई, कितनी निर्मम हो सकती है। जैसे एक पाषाण प्रतिमा, जिसमें न हृदय का स्पन्दन है और न श्वास का अवकाश। केवल एक आकृति है जो काली होती हुई भी रात्रि की स्मृति की भांति प्रिय प्रतीत होती है।