पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१९७

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वार्धक्य विजय

यौवन ने अनगिनत आक्रमण किये, पर वह शैशव को परास्त न कर सका, तुम्हारा वरद हस्त उसके मस्तक पर था। परन्तु ज्योंही उस पर से उस पाणि की छाया लोप हुई, वार्धक्य ने उसे अनायास ही विजय कर लिया। मा, यह वार्धक्य अब मुझे मृत्यु की ओर ले जा रहा है।