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तारों से भरी रात मे---मा, जब तुम मेरी छोटी सी खटियाके निकट बैठ कर, फूलो की रानी की कहानी सुनाती थी. और
जब सुनहरी घोड़े पर सवार होकर वह राजकुमार आता था तो
मुझे ऐसा प्रतीत होता था जैसे मैं ही वह सुनहरी घोडे का सवार
राजकुमार हूँ। उस समय मै एक बड़े से तारे मे दृष्टि जमाकर
कहता---मां, क्या वह राजकुमारी इस नारे से भी दूर है? वह
कैसे आ सकती है? तब तुम दुलार से मेरे सिर पर हाथ फेर कर कहती, हां, भैया, वह बहुत दूर है पर जब तुम बडे होगे तब उसे लाओगे। तब ढोल बजेगे, और बाजे गाजे की धूम धाम होगी। मैं उस फूलो की राजकुमारी की बहुत सी बाते