पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/२०३

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प्यार

प्यार प्यारे, जब से तूने हृदय मे वास किया, आत्मा जग उठी। मन मौज मे रम गया और संसार सुन्दर हो गया। जो नहीं देख पडता था--वह दिखाई देने लगा, बस अब तुझे ही देखने की अभिलाषा बाकी रही है।

मद्य और मादक पदार्थो से मुझे घृणा है। मुझे भय है कि कही तुझ मे उसका सम्पुट तो नहीं है। मद मे मत्त पुरुप को मैंने जैसे झूमते देखा है। तेरी लहर मन मे आते ही वह हाल मेरा हो जाता है। लाख रोकने पर भी मैं असम्बद्ध, असयत हो उठता हू। हजार सावधान रहने पर भी मूर्ख बन जाता हूँ।