कुछ याद नहीं। शायद दोनों ने दोनों को देखा। उसे देखने
ही में विष था पर हमने उसे अमृत समझा। हाँ, दोनों ने अमृत समझा। भूल हुई। उसी दिन हम मर गये थे, पर समझा जी गये हैं। उसी दिन धोखे मे हम दोनों मुस्कराये थे! आह! मूर्खता !
वह कुछ बोली नहीं। लजा कर चली गई। मैंने मन में कहा-कैसी अपूर्व है, कैसी अलौकिक है। तब मैं निर्लज्ज की तरह उसकी ओर देखता ही रहा। उसने मेरी निर्लज्जती देखी नहीं, जाने के बाद उसने पीछे फिर कर देखा ही न था। मुझे उस ओर ध्यान न था। जाती बार जो वह मुस्कुराहट बखेर गई थी, उसी पर मैंने ऑखें बिछा दीं।
उसके बाद क्या हुआ था? ठहरो, सोचता हूँ--हॉ उसके बाद एक दिन पान का बीड़ा देने आई थी। वह बीड़ा अभी तक मेरे बक्स मे रक्खा है। तब खाया नहीं था। उस समय मैंने उसे प्रिय चिन्ह समझ कर रख लिया था। यह सोचा भी न था कि यह मेरा चिरसहचर होगा। कदाचित् वह मेरा भविष्य फल था, अथवा इतिहास था। क्योंकि जब वह मेरे हाथ मे आया था---हरा भरा और रसपूर्ण था। सुगन्ध की लपट के मारे दिमाग मुअत्तर हो रहा था। किन्तु ज्यों ज्यों