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पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/७७

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आशा

आशा! आशा! अरी भलीमानस! जरा ठहर तो सही, सुन तो सही, कहाॅ खींचे लिये जा रही है? इतनी तेज़ी से, इतने जोर से? आखिर सुनूॅ तो कि पडाव कितनी दूर है? मञ्जिल कहाॅ है? ओर छोर किधर है? कहीं कुछ भी तो नहीं दीखता। क्या अन्धेर है। छोड़, मुझे छोड़। इस उच्चाकांक्षा से मैं बाज आया। पाड़ रहने दे, मरने दे, अव और दौड़ा नहीं जाता। ना-ना-अब दम नहीं रहा। यह देखो यह हड्डी टूट गई, पैर चूर चूर हो गये, सॉस रुक गया, दम फूल गया।