पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/७८

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क्या मार ही डालेगी सत्यानाशिनी? किस सब्ज़ बाग़ का झॉसा दिया था? किस मृगतृष्णा मे डाला मायाविनी? छोड़ छोड़, मैं तो यहीं मरा जाता हूँ यहीं समाप्त हो रहा हूँ मैंने छोड़ा, बाजदावा देता हूँ--मेरी जान छोड़। मैं यहीं पड़ा रहूँगा। भूख और प्यास सब मंजूर है---हाय! वह कैसी कुघड़ी थी जब मैं प्यारी शान्ति का हाथ छोड, उससे पल्ला छुड़ा, उसे धक्का मार, अन्धे की तरह---नही नहीं पागल की तरह---तेरे पीछे भागा था? कैसी भङ्ग खाली थी, कैसी सुमत गंवाई थी? कहाँ है मेरी शान्ति? कुछ भी पता नहीं है---जीती भी है या मर गई।

क्या करता। तेरी मोह भरी चितवन, उन्मादक मुस्कुराहट, और दिल को लोट-पोट करने वाली चपलता ने मुझे मार डाला मुझ पर, मेरे दिल पर, मेरी शान्ति पर, इन सब ने डाका डाला। शान्ति छुटी, सुख छुटा, घर बार छुटा, आराम छुटा, अब भी दौड़ बन्द नहीं? अब भी मंजिल पूरी नहीं? तैने कहा था, वहाँ एक करोड़ स्वर्गों का निचोड़ा हुआ रस सड़कों पर छिड़का जाता है। तैने कहा था, शान्तियों का वहाँ ढलाई का कारखाना खुला हुआ है। तैने कहा था, सुख के सात समुद्र भरे पड़े हैं। तैने कहा था, रूप का वहाँ अतर खींचा रखा है। तेरे इतने प्रलोभनों मे यदि मैं भटक गया तो भगवान् मेरा


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