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पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/८

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दुःखभरी दो बातें

मेरी यह रचना विधवा है। हाजी मुहम्मद के साथ एक तौर से मैंने इसका व्याह कर दिया था। यह आदमी गुजराती साहित्य-मन्दिर का मस्ताना पुजारी था---वह 'बीसवीं सदी' नामक प्रख्यात गुजराती पत्रिका का सम्पादक था। सबसे प्रथम उसी की दृष्टि मे यह रचना चढ़ा। उसने पागल की तरह इसे लाड किया---मैंने भी अपने पराये की परवाह न कर उसी से इसका व्याह कर दिया। व्याह होते होते ही तो वह मर गया।"

कितनी होंस से उसने इसे चाहा था। 'रूप' को सुनकर उसकी आँखे झूमने लगी थी, 'दुःख' को सुनकर वह रोया और 'अनुताप' को सुनकर वह उद्वेग के मारे खडा हो गया था। वह अच्छी तरह हिन्दी नहीं पढ सकता था, सुनता था। कितनी बार उसने इसका गुजराती अनुवाद करने को कलम हाथ मे ली पर रख दी। उसने कहा--"दिल की उमंग कुछ कम हो जाय---मजा ज़रा ठण्डा पड जाय---तब लिखूंगा।"

एक एक पक्ति पर चित्र बनाने की उसने तैयारियाँ की थीं।