पृष्ठ:अपलक.pdf/३६

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दान का प्रतिदान क्या, क्या, प्रिय ? दान का प्रतिदान क्या, प्रिय स्वयं को जब दे चुका, तब, प्रति ग्रहण का मान क्या, प्रिय दान का प्रतिदान क्या, प्रिय ! १ नेह के इस हाट में मैंने न जाना भाव क्या है? भाव-तावों में पड़े जो, वह, सुरति का चाव क्या है? दाँव पर जब प्राण हैं, तब, शेष भी कुछ दाँव क्या है ? जब कि दे डाला सभी कुछ, प्राप्ति का तब ध्यान क्या प्रिय ? दान का प्रतिदान क्या, प्रिय? २ मैं न मागूंगा कि मुझको, निठुर, तुम निज नेह दे दो, मैं न मागूंगा कि मम मरु-प्राण को कुछ मेह दे दो। मैं सतत अनिकेत क्यों माँगू कि तुम इक गेह दे दो। तव उपेक्षा के गरल का कर न लगा पान क्या, प्रिय दान का प्रतिदान क्या, प्रिय ? ३ तुम न मेरे हो सको तब भी मुझे क्या शोच, प्रियतम ? स्फटिक हीरक में, कहो, कब आ सका है लोच, प्रियतम ? बीस