पृष्ठ:अपलक.pdf/८४

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अपक्षक ३ आज मेरे सामने भावी-क्षितिज-विस्तार फैला, हो रही है आज यह निर्माण औ', संहार-खेला; विगत दर्शन की नहीं है आज अलसित थकित बेला; आज आँखों में अँजा है दूर-दर्शन-भाव-रोचन, क्यों करूं विगतावलोकन ? श्री गणेश कुटीर, प्रताप, कानपुर, दिनाङ्क ७-११-३८ उनहत्तर