पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१००

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अप्सरा इसी अवस्था में कुछ देर बोत गई। थकी हुई कनक प्रिय की बाहो मे विश्राम कर रही थी। पर हृदय में जागती थी। अपने सुख को आप ही अकेली तोल रही थी। उसी समय राजकुमार ने कहा- "मेरी बहूजी ने तुम्हें बुलाया है, इसीलिये आया था।" कनक की आत्मा में अव्यक्त प्रतिध्वनि हुई-नहीं तो न आते " फिर एक जलन पैदा हुई । शिराओं में तडित् का तेज प्रवाह बहने लगा। कितनी असहृदय बात ! कितनी नफरत ! कनक राजकुमार को छोड़ अपने ही पैरों सँभलकर खड़ी हो गई। चमकीली निगाह से एक बार देखा, पूछा-'नहीं तो न आते ?" अपने जवाब में राजकुमार को यह आशा न थी, वह विस्मय-पूर्वक खड़ा कनक को एक विस्मय की ही प्रतिमा के रूप से देख रहा था। अपने वाक्य के प्रथम अंश पर ही उसका ध्यान था । पर कनक को राजकुमार की बहूजी की अपेक्षा राजकुमार की ही ज्यादा जरूरत थी। इसलिये उसने दूसरे वाक्य को प्रधान माना । राजकुमार के भीतर जितना दुराव कुछ विरोधी गुणों के कारण कभी-कभी आ जाया करता था, वह उसके दूसरे वाक्य में अच्छी तरह खुल रहा था। पर उसकी प्रकृति के अनुकूल होने के कारण उसकी तरह का विद्वान मनुष्य भी उस वाक्य की फाँस नहीं समझ सका । कनक उसकी दृष्टि मे प्रिय अभिनेत्री; केवल संगिनी थी। ____ "तुम्हीं ने कहा था, याद तो होगा-तुम मेरी कविता हो; इसका जवाब भी जो मैंने दिया था, याद होगा।' लौटकर कनक डेरे की तरफ चली। उसके शब्द राजकुमार को पार कर गए । वह खड़ा देखता और सोचता रहा, “कब कहाँ गलती से एक बात निकल गई, उसके लिये कितना बड़ा ताना! मैं साहित्य की वृद्धि के विचार से अभिनय किया करता हूँ। स्टेज की मित्रता मानकर इनका यह बाँकपन (अहह, कैसा बल खाती हुई जा रही है ), नाजोमदा, नजाकत बरदाश्त कर लेता हूँ। आई हैं रुपए कमाने, ऊपर से मुझ पर गुस्सा झाड़वी हैं न जाने किसके कपड़ों का बोझ गधे की