अप्सरा ११६ "हैमिल्टन साहब भी आए थे।" कनक ने कहा । "फिर ?" राज- कुमार ने चंदन से पूछा। संक्षेप में कुल हाल चंदन बतला गया । युवती कनक को लेकर बगलवाले कमरे में चली गई। "आज ही चलना चाहिए।" चंदन ने कहा । "चलो।" "चलो नहीं, चारों तरफ लोग फैल गए होंगे। इस व्यूह से बचकर निकल जाना बहुत मामूली बात नहीं। और, तअज्जुब नहीं कि लोगों को दो-एक रोज़ में बात मालूम हो जाय।" "गाड़ी सजा लें, और उसी पर चले चलें।" 'स्टेशन।" "खूब ! तो फिर पकड़ जाने में कितनी देर है !" "फिर " " "औरत बन सकते हो ?" Ma" चंदन हँसने लगा। कहा-"हाँ भई, तुम औरतवाले कैसे औरत बनोगे ? पर मैं तो बन सकता हूँ।" "यह तो पहले ही से बने हुए हैं। कहती हुई मुस्किराती कनक के साथ युवती कमरे में आ रही थी। युवती कनक को वहीं छोड़कर भोजन-पान के इंतजाम के लिये चली गई। चंदन को कमरा बंद कर लेने के लिये कह दिया। चंदन ने कमरा बंद कर लिया। कनक निष्कृति के मार्ग पर आकर देख रही थी, उसके मानसिक भावों में युवती के संग-मात्र से तीब्र परिवर्तन हो रहा था। इस परि- वर्तन के चक्र पर जो शान उसके शरीर और मन को लग रही थी, उससे उसके चित्त की तमाम वृत्तियाँ एक दूसरे ही प्रवाह से तेज बह रही थीं, और इस धारा में पहले की तमाम प्रखरता मिटी जा रही
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