१२० अप्सरा थी, केवल एक शांत, शीतल अनुभूति चित्त की स्थिति को दृढ़तर कर रही थी, अंगों की चपलता उस प्रवाह से तट पर तपस्या करती हुई- सी निश्चल हो रही थी। राजकुमार चंदन से उसका पूर्वापर कुछ प्रसंग एक-एक पूछ रहा था। चंदन बतला रहा था। दोनों के वियोग के समय से अब तक की संपूर्ण घटनाएँ, उनके पारस्परिक संबंध वार्तालाप से जुड़ते जा रहे थे। "तुम विवाह से घबराते क्यों हो ?" चंदन ने पूछा। "प्रतिज्ञा तुम्हें याद होगी।" राजकुमार ने शांत स्वर से कहा ।। "वह मानवीय थी, यह संबंध दैवी है, इसमें शक्ति ज्यादा है।" "जीवन का अर्थ समर है।" "पर जब तक वह कायदे से, सतर्क और सरस अविराम होता रहे। विक्षिप्त का जीवन जीवन नहीं, न उसका समर समर।" मैं अभी विक्षिप्त नहीं हुआ। ___चोट खा वर्तमान स्थिति को कनक भूल गई । अत्रस्त-दृष्टि, अकुंठित कंठ से कह दिया-"मैंने विवाह के लिये कब, किससे प्रार्थना की" चंदन देखने लगा। ऐसी आँखें उसने कभी नहीं देखीं। इनमें कितना तेज! ___ कनक ने फिर कहा-राजकुमारजी, आपने स्वयं जो प्रतिज्ञा की है, शायद ईश्वर के सामने की है, और मेरे लिये जो शब्द आपके है- आप ईडन गार्डेन की बातें नहीं भूले होंगे वे शायद वारांगना के प्रति हैं ? ___ चंदन एक बार कनक की आँखें और एक बार नत राजकुमार को देख रहा था। दोनो के चित्र सत्य का फैसला कर रहे थे। ____ तारा ने दो नौकरों को बारी-बारी से दरवाजे पर बैठे रहने के लिये तैनात कर दिया । कह दिया कि बाहरी लोग उससे पूछकर भीतर आ। शोरगुल सुनकर वह ऊपर चली गई, देखा, कनक जैसे एकांत में
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