पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१२९

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अप्सरा रोटियाँ सेंकती होंगी, आज खुद ही पकाने लगीं, कहा, अब चलते वक्त, रोटियों से हैरान क्यों करें ?" ____ चंदन चला गया। तारा फिर कनक से बातचीत करने लगी। तारा के प्रति पहले ही व्यवहार से कनक आकर्षित हो चुकी थी। धीरे-धीरे वह देखने लगी। संसार में उसके साथ पूरी सहानुभूति रखनेवाली केवल तारा है। कनक ने पहलेपहल तारा को जब दीदी कहा, उम समय कनक के हृदय पर रक्खा हुआ जैसे तमाम बोझ उतर गया। दीदी की एक स्नेह-सिक्त दृष्टि से उसकी थकावट, कुल अशांति मिट गई। पारिवारिक तथा समाज के सुख से अपरिचित कनक ने स्नेह का यथार्थ मूल्य उसी समय सममा । उसकी बाधाएँ आप-ही-आप दूर हो गई। अब जैसे भूली हुई वह एकाएक राज-पथ पर आ गई हो। राजकुमार के प्रथम दर्शन से लेकर अब तक का पूरा इतिहास, अपने चित्त के विक्षेप की सारी कथा, राजकुमार से कुछ कह न सकने की लज्जा सरल सलज मंद स्वर से कहती रही। __राजकुमार बरालवाले कमरे में जाग रहा था, अपनी पूरी शक्ति से, इस आई हुई अड़चन को पार कर जाने के लिये, चिंताओं की छलॉग मार रहा था। कभी-कभी उठती हुई कल हास्य-ध्वनि से चौंककर अपने वैराग्य की मात्रा बढ़ाकर चुप हो.जाता।। वंदन अपना काम पूरा कर आ गया। पलंग पर बैठकर कहा- उठो, तुम्हें एक मजेदार बात सुनाऊँ। राजकुमार जागता था ही, उठकर बैठ गया। "सुनो, कान में कहूँगा" चंदन ने धीरे से कहा। राजकुमार ने चंदन की तरफ सर बढ़ाया। चंदन ने पहले इधर-उधर देखा, फिर राजकुमार के कान के पास मॅह ले गया। राजकुमार सुनने के लिये जब खूब एकाग्र हो गया, तो चुपके से कहा, "नहायोगे नहीं ? विरक्ति से राजकुमार लेटने लगा। चंदन ने हाथ पकड़ लिया- "वस अब, उधर देखो, मुकदमा दायर है, अब पुकार होती ही है।"