पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अप्सरा बैठी हुई हो । उसके चेहरे की उदास, चिंतित चेष्य से तारा के हृदय मे उसके प्रति स्नेह का स्रवण खुल गया। उसने युवकों की तरफ देखा। राजकुमार मुँह मोड़कर पड़ा हुआ परिस्थिति से पूर्ण परिचित करा रहा था। मामी को गंभीर मुद्रा से देखते हुए देखकर चंदन ने अकुंठित खर से कह डाला-"महाराज दुष्यंत को इस समय दिमाग की गर्मी से विस्मरण हो रहा है, असारथली के यहाँ का गुलाब-जल चाहिए।" कनक मुस्किराने लगी। ताय हँसने लगी। ___ "तुम यहाँ आकर आराम कये," कनक से कहकर, तारा ने चंदन से कहा-"छोटे साहब, जरा तकलीफ कीजिए, इस पलँग को उठा- कर उस कमरे में डाल दीजिए, दूसरे को अब इस वक्त न बुलाना ही ठीक है। कनक को लेकर वारा दूसरे कमरे में चली गई। "उठो जी, पलँग बिछाओ," चंदन ने राजकुमार को खोदकर कहा। राजकुमार पड़ा रहा। हँसते हुए पलँग उठाकर चंदन ने बरालवाले कमरे में डाल दिया। विस्तर बिछाने लगा। तारा ने विस्तर छीन लिया । खुद बिछाने लगी। कनक की इच्छा हुई कि तारा से बिस्तर लेकर बिछा दे, पर इच्छा को कार्य का रूप न दे सकी, खड़ी ही रह गई, तारा के प्रति एक श्रद्धा का भाव लिए, और इसी गुरुता से उसे मालूम हुआ जैसे उसका मेरुदङ झुककर टूट जायगा। . तारा ने चंदन से कहा-'यही दो घड़े पानी भी ले आइए।" चंदन चला गया। सारा कनक को बैठाकर बैठ गई और राजकुमार की बातें साधत पूछने लगी। चंदन ने कहा, आगे एक स्टेशन चलकर गाड़ी पर चढ़ना है। चंदन पानी ले आया, तो तारा ने कहा--"एक काम और है, आप लोग भी पानी भरकर जल्द नहा लीजिए, और आप जरा बीचे मुन्नी से कह दीजिए कि वह हरपालसिंह को बुला लावे, अम्मा शायद अब