पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१३१

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सर शुभ वातालाप के समय शंका न हो. इस विचार से सचेत हरपालसिह ने एक बार सबको देखा, फिर छहा-प्रसगुन नहीं है, तंबाकू की झार से छोक आई है।" ___ नारा ने कहा- भैया, आज शाम को अपनी गाड़ी ले आओ और चार जन और साथ चले चलो, अगले स्टेशन में छोड़ पाओ, छेटे साहब वाईजी को भी बचाकर साथ ले आए हैं न, नहीं तो वहाँ उनका उन बदमाशों से छुटकारा न होता, बाईजी ने बचाने के लिये कहा, फिर संकट में भैया आदमी ही आदमी का साथ देता है, भला कैसे छोड़कर पाते ? ___ हरपालसिंह ने डंडा सँभालकर मुट्टी से जमीन में दबाते हुए एक पीक वहीं थूककर कहा-“यह तो छत्री का धर्म है । गोसाइजी ने लिखा है- खुकुल रोति सदा चलि आई; प्रान नायँ पै बचन न जाई।" फिर राजकुमार का कल्ला दबाते हुए कहा-"आप तो अँगरेजी पढ़े हो, हम तो बस थोड़ी-बाड़ी हिंदी पढ़े ठहरे, है न ठीक बात ___ राजकुमार ने जहाँ तक गंभीर होते बना, वहाँ तक गंभीर होकर कहा-"आप ठीक कहते हैं।" तारा ने कहा- तो भैया, शाम को आ जाओ, कुछ रात बीते चलना है।' ___ बस चैल घरकर आए कि हम जोतकर चले, कुछ और काम तो ____ "नहीं भैया, और कुछ नहीं।" ___ हरपालसिंह ने उठकर ताय के पैर छुए और खटाखट जीने से उतर- कर बाहर श्रा, आल्हा अलापना शुरू कर दिया-“दूध लजाबैं ना माता को, चहै तन धजी-धजी उड़ जाय; जोते बैरी हम ना राखें, हमरो क्षत्री धरम नसाय ।" गाते हुए चला गया। "रज्जू बाबू, गलती आपकी है।" तारा ने सहज स्वर में कहा।