अप्सरा १२६ दे देने से नुकसान कुछ नहीं, बल्कि फायदा ज्यादा है, यों उन लोगों को पीछे से तमाम इतिहास मालूम हो ही जायगा। _____ कनक यह परिचय के छिपाने का मतलब कुछ-कुछ समझ रही थी। उसे अच्छा नहीं लगा । पर तारा की बात उसने मान ली । चुपचाप सिर हिलाकर सम्मति दी। तारा भी भोजन करने चली गई। कनक को इस व्यक्तिगत घृणा से एक जलन हो रही थी। वह समझने की कोशिश करके भी समझ नहीं पाती थी। एक सांत्वना उसके उस समय के जीवन के लक्ष्य मे तारा थी । तारा के मौन प्रभाव की कल्पना करते-करते उसकी आँख लग गई। राजकुमार और चंदन भोजन कर आ गए। चंदन को नींद लग रही थी। राजकुमार स्वभावतः गंभीर हो चला था। कोई बातचीत नहीं हुई । दोनो लेट रहे। कुछ दिन के रहते, अपना असबाब बंधवाकर तारा कनक को देखने गई। चंदन सो रहा था। राजकुमार एक किवाव बड़े गौर से पढ़ रहा था। कनक को देखा, सो रही थी। जगा दिया । घड़े से पानी डालकर मुंह धोने के लिये दिया। पान लगाने लगी। कनक मुँह धो चुकी । वारा ने पांन दिया। एक बार फिर समझा दिया कि अब घर की खियों से मिलना होगा, वह खूब सँभलकर बात- चीत करेगी। यह कहकर वह चंदन के पास गई । चंदन को जगा दिया और कह दिया कि अब सब लोग आ रही हैं, और वह छीटो के लिये तैयार होकर, हाथ-मुँह धोकर बैठे। तारा नीचे चली गई । चंदन भी हाथ मुँह धोने के लिये नीचे उतर गया । राजकुमार किताब में तल्लीत था। देखते-देखते कई औरतें बराबर के दूसरे मकान से निकलकर वारा के कमरे पर चढ़ने लगी। आगे-आगे तारा थी।. तारा के घर के लोग, उसके पिता और भाई, जो स्टेट में नौकर
पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१३६
दिखावट