१३० अप्सय थे, चंदन की गिफ्तारी का हाल जानते थे। इससे भागनं पर निश्चय कर लिया था कि छोटी बाईजी को वही लेकर भागा है। इस समय इंतजाम से उन्हें सित न थी। श्रतः घर सिर्फ दोपहर को भोजन के लिये आए थे और चुपचाप तारा से पूछकर भोजन करके चले गए थे। घर की स्त्रियों से इसकी कोई चर्चा नहीं की। डर रहे थे कि इस तरह भेद खुल जायगा। वारा उसी दिन चली जायगी, इससे उन्हें कुछ प्रसन्नता हुई और कुछ चिंता भी । तारा के पिता ने ताय से कहा कि बड़े जोर-शोर की खोज हो रही है और शायद कलकत्ते के लिये आदमी रवाना किए जायें । उन्होंने यह भी बतलाया कि कई साहब आए थे, एक घबराए हुए हैं, शायद आज ही चले जायें। तारा दा- एक रोज़ और रहती। पर भेद के खुल जाने के डर से उसी रोज तैयार हो गई थी। उसने सोच लिया था कि वह किसी तरह विपत्ति से बच भी सकती है, पर एक बार भी अगर गढ़ में यह खबर पहुंच गई, तो उसके पिता का किसी प्रकार भी बचाव नहीं हो सकता। स्त्रियों को लेकर तारा कनक के कमरे में गई। दोनो पलँग के बिस्तर के नीचे से दरी निकालकर फर्श पर बिछाने लगी। उसकी भावज ने उसकी सहायता की। ____कनक को देखकर तारा की भावजे और बहनें एक दूसरी को खोदने लगीं। तारा की मा को उसे देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ । कनक की ऐसी दृष्टि थी, जिसकी तरफ देखकर किसी भी गृहस्थ की खियों को कोष होता ! उसकी दृष्टि में श्रद्धा न थी, थी संर्धा बिलकुल सीधी चितवन, उम्र में उससे बड़ी बड़ी त्रियाँ थीं, कम-से-कम तारा की मा तो थी ही, पर उसने किसी प्रकार भी अपना अदब नहीं जाहिर किया । देखती थी जैसे जंगल की हिरनी जल्द न्द की गई हो। तारा कुल मतलब समझती थी, पर कुछ कह नहीं सकती थी। कनक ने त्रियों से मिलने की सभ्यता का एक अक्षर भी नहीं पढ़ा था, उसे जरूरत भी नहीं थीं। वह प्रणाम करना तो जानती ही न थी खड़ी कमी तारा को देखती, कमी खियों को। तारा की माता प्रणाम
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