पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१३८

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अप्सरा करवाने, और ब्राह्मण कन्या या ब्राह्मण-बहू होने पर उसे प्रणाम करने की लालसा लिए ही खड़ी रह गई। तारा से पूछा, कौन है ? तारा ने कहा, अपनी ही बात । कनक को हार्दिक कष्ट था । जाहिर करने का कोई उपाय न था, इससे और कष्ट। ____ कनक का सेंदुर धुल गया था। पर उम्र से तारा की मा तथा औरों को विवाह हो जाने का ही निश्चय हो रहा था। कभी सोच रही थी कि शायद विधवा हो । पहनावे से फिर शंका होती थी। इन सब मानसिक प्रहारों से कनक का कलेजा जैसे सब तरफ से दबा जा रहा हो. कहीं साँस लेने की जगह भी न रह गई हो। कुछ देर तक यह दृश्य देखकर सारा ने माता से कहा, अम्मा, बैठ जात्रो। ___तारा की मा बैठ गई और स्त्रियाँ भी बैठ गई । तारा ने कनक को भी बैठा दिया। ___ कनक किसी तरह उनमें नहीं मिल रही थी। ताय की मा उसके प्रणाम न करने के अपराध को किसी तरह भी क्षमा नहीं करना चाहती थी, और उतनी बड़ी लड़की का विवाह होना उनके पास ६९ फ्री सदी निश्चय में दाखिल था। ___ प्रखर स्वर से कनक से पूछा- कहाँ रहती हो बधी?" कनक के दिमारा के तार एक साथ मनाना उठे । उत्तर देना चाहती थी, पर गुस्से से बोल न सकी। तारा ने सँभाल लिया-कलकच्चे में।" ____"यह गूंगी हैं क्या ?" तारा की मा ने दूसरा वार किया । और- और त्रियाँ एक दूसरी को खोदकर हँस रही थीं। उन्हें ज्यादा खुशी कनक के तंग किए जाने पर इसलिये थी कि वह इन सबसे सुंदरी थी, और एक-एक बार जिसकी तरफ भी उसने देखा था, सबने पहले ऑखें मुका ली थीं और दोबारा आँखों के प्यालों में ऊपर तक जाहर भर उसकी तरफ उँडेला था। उसके इतने सौंदर्य के प्रभाव से उतने समय के लिये वीतराग होकर और सौंदर्य को मन-ही-मन क्रस्विर की संपत्ति कयर दे रही थीं। . . .