१३५ अप्सरा जगह मिली । काम हो रहा है देख वह लौट गई। इनके व्यवहार से मन-ही-मन उसे बड़ी लज्जा थी। तारा कनक के पास चली गई। उसके प्रति व्यावहारिक जो अन्याय उसके साथ उसके मकान की स्त्रियों ने किया था, उसके लिये बार-बार क्षमा माँगने लगी। पहले उसे लन्ना होती थी, पर दूसरे बार की आलोचना ने उसे काफी बल पहुँचा दिया। , 'दीदी, आप मुझे मिलें, तो सब कुछ छोड़ सकती हूँ।" कनक ने स्नेह-सिक्त स्वर से कहा। ___ तारा के हृदय में कनक के लिये पहले ही से बड़ी जगह थी। इस शब्द से वहाँ उसकी इतनी कीमत हो गई, जितनी आज तक किमी की मी नहीं हुई थी। चंदन पड़ा हुआ सुन रहा था, उससे नहीं रहा गया, कहा, बस, जैसी तजवीज आपने निकाली है, कुल रोगों को एक ही दवा है, मज- बूती से इन्हें पकड़े रहिए, गुरु समर्थ है; तो चेला कमी तो सिद्ध हो ही जायगा। . हरपालसिंह ने आवाज लगाई। तारा उठ गई। दिखाकर हरपाल- सिह ने दरवाजे पर ही कुल सामान दे दिया और पूछकर अपनी गाड़ी लेने चला गया। रात एक घंटे से ज्यादा पार हो चुकी थी। यह सब सामान तारा ने अपनी भावजों तथा अपने नियुक्त किए हुए लोगों और कुछ परजों को देने के लिये मँगवाया था। मकान में जाकर तैयारी करने के लिये अपनी मा से कहा। पूड़ियाँ बॉध दी गई। असबाब पहले ही से बाँधकर तैयार कर रक्खा था। घर में लियाँ एकत्र होने लगी। पड़ोस की भी कुछ खियाँ श्रा- आकर जमने लगी। तारा उठकर बार-बार देववों को स्मरण कर रहे. थी। ऊपर जा कनक को ओढ़ने के लिये अपनी चादर दी। भूल गई थी, छत से उसकी फेशवाज ले आई. और बाँधकर एक बॉक्स में निसमें पुराने कपड़े आदि मामूली सामान थे, डाल दिया।
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