पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१६१

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अप्सरा राजकुमार ने कुंजी दे दी। कुछ पूछा नहीं, कहा- मैं कल चला जाऊँगा । लौटकर दूसरी कुंजी बनवा लूँगा। न्योते में तुम तो होगे "जहाँ मुफ्त माल मिलता हो, वहाँ मेरी बेरहमी तुम जानते हो।" "तुमने मुफ्त माल के लिये काकी गुंजाइश कर ली। आसामी मालदार है।" ___ "दादा, किस्मत तो तुम्हारी है, जिसे यस्ता चलते जान-च-माल दोनो मिलते हैं। यहाँ तो ईश्वर ने दिखलावे के लिये बड़े घर में पैदा किया है, रहने के लिये दूसरा ही बड़ा घर चुना है, रामबान कूटतेकूटते जान जायगी देखो अब ! कपाल क्या मशाल जल रही है।" चंदन ने राजकुमार को देखते हुए कहा। नौकर ने कहए जल्दी जाइए, सामान रख दिया बावू ! राजकुमार और चंदन भवानीपुर चले । राह में चंदन ने उसे कनक के यहाँ छोड़ जाने के लिये पूछा, पर उसने पहले घर चलकर अम्मा और बड़े भैया को प्रणाम करने की इच्छा प्रकट की। चंदन ड्राइव कर रहा था। सीधे भवानीपुर चला। राजकुमार को देखकर चंदन की माता और बड़े भाई नंदन बड़े खुश हुए। बहू ने मकान जाते ही पति से राजकुमार के नए ढंग के विवाह की कथा को, अपनी सरलता से रंग चढ़ा-चढ़ाकर, खूब चमका दिया था। नंदन की वैसी स्थिति में राजकुमार से पूरी सहानुभूति थी। तारा ने अपनी सास से इसकी चर्चा नहीं की। नंदन ने भी मना कर दिया था। तारा को कुछ अधिक स्वतंत्रता देने के विचार से नंदन ने उसके जाते ही खोदकर माता के काशी-वास की कथा उठा दी थी। अब तक इसी पर बहस हो रही थी, उन्हें कौन काशी छोड़ने जायगा, वहाँ कितना मासिक खर्च संभव है, एक नौकर और एक ब्राह्मण से काम चल जायगा या नहीं, आदि-आदि। इसी समय राजकुमार और चंदन वहाँ पहुँचे। राजकुमार ने मित्र की माता के चरण छूकर धूलि सर से लगा ली,