पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१६०

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अप्सरा मैनेजर ने श्रागंतुक को देखे विना अपना खाता खोलकर बतलाया"चालीस रुपए, दो महीने का है ; आपको वो मालूम होगा। चंदन ने बिलकुल सज्ञान की तरह कहा-"हाँ, मालूम था, पर मैंने कहा, एक दुका जाँच कर लूँ। अच्छा, यह लीजिए।" चंदन ने चालीस रुपए के चार नोट दे दिए। ___“अच्छा, आप बवला सकते हैं, आज मेरे नाम की यहाँ किसी ने जॉच की थी?" चंदन ने गौर से मैनेजर को देखते हुए पूछा। "हाँ, एक आदमी आया था। उसने पूछ-ताछ की थी, पर इस तरह अक्सर लोग आया करते हैं, पूछ-पछोरकर चले जाते हैं। मैनेजर ने कुछ विरक्ति से कहा। ___"हाँ, कोई गैरजिम्मेदार आदमी होंगे, कुछ काम नहीं, तो दूसरों की जाँच-पड़ताल करते फिरे।". व्यंग्य के खर में कहकर चंदन वहाँ से चल दिया । मैनेजर को चंदन का कहना अच्छा नहीं लगा। जब उसने निगाह उठाई, तब चंदन मुँह फेर चुका था। राजकुमार के कमरे में जाकर चंदन ने देखा, वह अखबार उलट रहा था। पास बैठ गया। "तुम्हारा न्योता है, रक्खो अखबार ।" "तुम्हारी बोबी के यहाँ।। "मैं घर जाना चाहता हूँ। अम्मा ने बुलाया है। कॉलेज खुलने तक लौटूंगा।" "तो कल चले जाना, न्योता वो आज है।" "गाढ़ी तो ले आए होंगे ?" "अरे रमजान !" राजकुमार ने नौकर को बुलाया। इसका नाम रामजियावन था । पर राजकुमार ने छोटा कर लिया था। रामजियावन सामान उठाकर मोटर पर रखने लगा। . , "कमरे की कुंजी मुझे दे दो।" चंदन ने कहा।