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पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१६५

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१५८ अप्सरा उसी देश की दुर्दशा, भारतीयों का अर्थ-संकट, संपत्ति-वृद्धि के उपाय अनेकता में एकता का मूल सूत्र आदि-आदि सविनों की अनेक उक्तियों की एक राह से गुजर रहा था। इसी से उसे अनेक चित्र, अनेक भाव, अपार सौंदर्य मिल रहा था। संसार की तमाम जातियाँ उसके एक तागे से बँधी हुई थीं, जिन्हें इंगित पर नचाते रहनेवाला वही सूत्रधार था। "उतये जी।" राजकुमार की बाँह पकड़कर चंदन ने झकझोर दिया। तब तक राजकुमार कल्पना के मार्ग से बहुत दूर गुजर चुका था, जहाँ वह और कनक आकाश और पृथ्वी की तरह मिल रहे थे; जैसे दूर भाकाश पृथ्वी को हृदय से लगा, हृदय-बल से उठाता हुआ, हमेशा उसे अपनी ही तरह सीमा-शून्य, अशून्य कर देने के लिये प्रयत्न तत्पर हो, और यही जैसे सृष्टि की सर्वोत्तम कविता हो रही हो। राजकुमार सजग हो धीरे-धीरे उतरने लगा। तब तक श्याम बाजारवाली ट्राम आ गई । खींचते हुए चंदन ने कहा-'गृहस्थी की फिर चिंता करना, चोट खाकर कहीं गिर जाओगे।" ___ दोनो श्याम बाजारवाली गाड़ी पर बैठ गए। बहू-बाजार के चौराहे के पास टाम पहुँची, तो उतरकर कनक के मकान की तरफ चले। चंदन ने देखा, कनक तिमंजिले पर खड़ी दूसरी तरफ चित्तरंजनऐवेन्यू की तरफ देख रही है। . राजकुमार को बड़ी खुशी हुई। वह मर्म समझ गया। चंदन से कहा, बतला सकते हो, आप उस तरफ क्यों देख रही हैं ? ___“अजी, ये सब इंतजारी के नजारे, प्रेम के मजे हैं, तुम मुझे क्या समझाओगे ?" ___ 'मजे तो हैं, पर ठीक वजह यह नहीं; बहू को मैं इसी तरफ से लेकर गया था।" __"अच्छा ! लड़ाई के बाद ?" राजकुमार ने हँसकर कहा-"हाँ" "अच्छा, आपने सोचा, मियाँ इसी राह मसजिद दौड़ते हैं।"