पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१६८

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अप्सरा ११ ___ तारा ने पहले ही से कनक की पेशवाज निकाल रक्खी थी । दिया सलाई और पेशवाज लेकर सीधे छत पर चढ़ने लगी। ये लोग पीछेपीछे जा रहे थे। छत पर रखकर, दियासलाई जला, आग लगा दी। कनक गंभीर हो रही थी । पेशवाज जल रही थी। निष्पंद पलके, अंतष्टि। ___ तारा ने कहा- प्रतिज्ञा करो, कहो, अब ऐसा काम कभी नहीं करूंगी।" अब ऐसा काम कभी नहीं करूंगी।" कनक ने कहा। "कहो, सुबह नहाकर रोज शिव-पूजन करूंगी।" कनक ने कहा-"सुबह नहाकर रोज शिव-पूजन करूंगी।" उस समय की कनक को देखकर चंदन तथा राजकुमार के हृदय मे मर्यादा के भाव जग रहे थे। __तारा ने कनक को गले लगा लिया। कहा-"अपनी मा से दूसरी जगह रहने के लिये कहो, मकान में एक यज्ञ कराओ, एक दिन गरीबो को भोजन दो, मकान में एक छोटा-सा शिव-मंदिर बनवा लो, जब तक मंदिर नहीं बनता, तब तक किसी कमरे में, अलग, जहाँ लोगों की आमदरफ्त ज्यादा न हो, पूजास्थान कर लो। आज आदमी भेजकर एक शिव मूर्ति मैंने मँगा ली है। चलो, लेती जाओ।" _ 'भाभी, चंदन ने रोककर कहा, “यह सब सोना, जो मिट्टी में पड़ा है, कहो तो मैं ले लूँ।" राजकुमार ह्सा। ले लीजिए।' कहकर तारा कनक को साथ ले नीचे उतरने लगी। वह चंदन को पहचानती थी। राजकुमार खड़ा देखता रहा। चंदन राख फूंककर सोने के दाने इकट्ठ कर रहा था। एकत्र कर तज्जुब की निगाह से देखता रहा। सोना दो सेर से ज्यादा था। "ईश्वर करे, रोज एक पेशवाज ऐसी जले, सोना गरीबों को दिया