पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१६९

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१६. अप्सरा जाय।" कहकर, अपनी धोती के छोर में बाँधकर, चंदन अपने कमरे की तरफ उतर गया। राजकुमार बहू के पास रह गया। चंदन के बड़े भाई भी आ गए थे, कहीं बाहर गए हुए थे । तारा से उन्होंने बहू देखने की इच्छा जाहिर की थी । तारा ने कह दिया था कि कुछ नजर करनी होगी। शायद इसी विचार से बाजार की तरफ गए थे। नीचे बैठे प्रतीक्षा कर रहे थे, कब बुलावा भावे । बहू ने दरबान से राक रखने के लिये कह दिया था। ___ तारा ने अपनी खरीदी हुई एक लाल रेशमी साड़ी कनक को पहना दी। सुबह की पूजा का पुष्प चढ़ाया हुआ रक्खा था, सिर से छुला चलते समय अपने हाथों गंगा में छोड़ने का उपदेश दे सामने के आँचल में बाँध दिया, जिसकी भट्टी गाँठ चाँद के कलंक की तरह कनक को और संदर कर रही थी। इसके बाद नया सिंदूर निकाल मन-ही-मन गौरी को अर्पित कर कनक की माँग अच्छी तरह भर दी। राजकुमार से कहा, जाओ, अपने भाई साहब को बुला लाओ, वह देखेंगे । कनक का चूंघट काढ़ दिया । फर्श पर बैठा, दरवाजा बंद कर, दरवाजे के पास खड़ी रही। ___ नंदन ने भेंट करने की बड़ी-बड़ी कल्पनाएँ की, पर कुछ सूझा नहीं। सारा से उन्हें मालूम हो चुका था, कनक ऐश्वर्यवती है । इसलिये हजार-पाँच सौ की भेंट से उन्हें संतोष नहीं हो रहा था । कोई नई सूझ नहीं आ रही थी। तब तक उनके सामने से एक आदमी लेकर गुजरा चर्खा । कलकत्ते में कहीं कहीं, जनेऊ केलिये शुद्ध सूत निकालने के अभिप्राय से, बनते और बिकते थे। स्वदेशी आंदोलन के समय कुछ प्रचार स्वदेशी वस्त्रों का भी हुआ था, तब से बनने लगे थे। खोजकर एक अच्छा चर्खा उन्होंने भी खरीद लिया । इसके साथ उन्हें शांतिपुर और बंगाल-कैमिकल की याद आई । एक शांतिपुरी कीमती साड़ी और कुछ बंगाल-कैमिकल से तेल फुलेल-एसेंस पौडर आदि खरीद लिए, पर ये सब बहुत साधारण कीमत पर आ गए थे। उन्हें संतोष नहीं हुआ। वह जवाहरात की दूकान पर गए।