पृष्ठ:अप्सरा.djvu/२३

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अप्सरा

अप्सरा अच्छा या प्रभात के सूरज से चमकती हुई उसकी किरणों से खेलकर फिर अपने मकान, आकाश को चली जाय, तो अच्छा ?" ___दोनो अच्छे हैं उसके लिये । हवा के झूले का आनंद किरणो से हॅसने में नहीं, वैसे ही किरणों से हँसने का आनंद हवा के झूले मे नहीं। और, घर तो वह पहुँच ही जाती है, गिरे या डाल ही पर सूख जाय । "पर अगर हवा में झुलने से पहले ही वह सूखकर उड़ गई हो ?" "तब तो बात ही और है। "मैं उसे यथार्थ रंगीन पंखोंवाली परी मानती हूँ।" "क्या तू खुद ऐसी ही परी बनना चाहती है ?" "हाँ अम्मा, मैं कला को कला की दृष्टि से देखती हूँ। उससे अर्थ- प्राप्ति करना उसके महत्व को घटा देना नहीं ?" ____ "ठीक है, पर यह एक प्रकार बदला है। अर्थवाले अर्थ देते हैं, और कला के जानकार उसका आनंद । संसार में एक-दूसरे से ऐसा ही संबंध है। ____ "कला के ज्ञान के साथ-ही-साथ कुछ ऐसी गंदगी भी हम लोगों के चरित्र में रहती है, जिससे मुझे सख्त नफरत है।" माता चुप रही। कन्या के विशद अभिप्राय को ताड़कर कहा- "तुम इससे बची हुई भी अपने ही जीने से छत पर जा सकती हो, जहाँ सबकी तरह तुम्हें भी आकाश तथा प्रकाश का बराबर अंश मिल सकता है।" ____ "मैं इतना यह सब नहीं समझती । समझती भी हूँ, तो भी मुझे कला को एक सीमा में परिणत रखना अच्छा लगता है। ज्यादा विस्तार से वह कलुषित हो जाती है, जैसे बहाव का पानी, उसमें गंदगी डालकर भी लोग उसे पवित्र मानते हैं। पर कुएँ के लिये यह बात नहीं । स्वास्थ्य के विचार से कुएँ का पानी बहते हुए पानी से बुरा नहीं । विस्तृत व्याख्या तथा अधिक बढ़ाव के कारण अच्छे-से-अच्छे कृत्य बुरे धब्बों से रँगे रहते हैं ।