पृष्ठ:अप्सरा.djvu/२६

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अप्सरा
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अप्सरा बड़ा बाजार थाने में एक पत्र लेकर नौकर दारोगाजी के पास गया। दारोगाजी बैठे हुए एक मारवाड़ी को किसी काम में शहादत के लिये समझा रहे थे कि उनके लिये और खास तौर से सरकार के लिये यह इतना-सा काम कर देने से वे मारवाड़ी महाशय को कहा तक पुरस्कृत कर सकते हैं, सरकार की दृष्टि में उनकी कितनी इज्जत होगी, और आर्थिक उन्हें कितने बड़े लाम की संभावना है। मारवाड़ी महाशय बड़े नन शब्दों में, डरे हुए, पहले तो इनकार कर रहे थे, पर दारोगाजी की वक्त ता के प्रभाव से अपने भविष्य के चमकते हुए भाग्य का काल्पनिक चित्र देख-देख, पीछे से हाँ-ता के बीच खड़े हुए मन-ही-मन हिल रहे थे, कभी इधर, कमी उधर । उसी समय कनक के जमादार ने खत लिए हुए ही घुटनों तक झुककर सलाम किया। दारोगा साहब ने "आज तखत बैठो दिल्लीपति नर" की नजर से क्षुद्र जमादार को देखा । बढ़कर उसने चिट्ठी दे दी। दारोगाजी उसी समय चिट्ठी को फाड़कर पढ़ने लगे। पढ़ते हुए मुस्किराते जाते थे। पढ़कर जेब में हाथ डाला । एक नोट पाँच रुपए का था। नौकर को दे दिया । कहा तुम चलो। कह देना, हम अभी आए । अँगरेजी में पत्र यों था- ३, बहूबाजार स्ट्रीट, कलकत्ता, ३-४-१८ प्रिय दायेगा साहब, आपसे मिलना चाहती हूँ। जब से स्टेज पर से आपको देखा- आहा ! कैसी गजब की आपकी आँखें-दोबारा जब तक नहीं देखती, मुझे चैन नहीं क्या आप कल नहीं मिलेंगे? आप ही की कनक थानेदार साहब खूबसूरत नहीं थे। पर उन्हें उस समय अपने सामने शाहजादे सलीम का रंग भी फीका और किसी परीजाद के