असर आखें भी छाटी जान पड़ी। तुरंत उन्होंने मारवाड़ा महाशय का विद्या कर दिया । तहकीकात करने के लिये मछुआ बाजार जाना था, काम छाटे थानेदार के सिपुर्द कर दिया, यद्यपि वहाँ बहुत-से रुपए गुंडो से मिलनेवाले थे। उठकर कपड़े बदले और सादी सफेद पोशाक में वह बाजार की सैर करने चल पड़े। पत्र जेब में रखने लगे, तो फिर उन्ने अपनी आँखों की बात याद आई । झट शीशे के सामने जाकर खड़े हा गए, और तरह-तरह से मुंह बना-बनाकर, आँखें फाड़-फाड़कर देखने लगे। उनके मन को, उस सूरत से, उन आँखों से, तृप्ति न थी; पर जबरन मन को अच्छा लगा रहे थे। दस मिनट तक इसी तरह सूरत देखते रहे। शीशे के सामने वैसलीन ज्यादा-सा पात लिया। मुँह धोया । पाउडर लगाया। एसेंस छिड़का। फिर आईने के सामने खड़े हो गए। मन को फिर न अच्छा लगा। पर जोर दे-देकर अपने को अच्छा साबित करते रहे । कनक के मंत्र ने स्टेज पर ही इन्हे वशीभूत कर लिया था। अब पत्र भी आया, और वह भी प्रणय- पत्र के साथ-साथ प्रशंसा-पत्र, उनकी विजय का इससे बड़ा और कौन-सा प्रमाण होता ? कहाँ उन्हें ही उसके पास प्रणय की मिक्षा के लिये जाना था, कहाँ वही उनके प्रेम के लिये, उनकी जादू-भरी निगाह के लिये पागल है। उस पर भी उनका मन उन्हे सुंदर नहीं मानता। यह उनके लिये सहन कर जानेवाली बात थी ? एक कांस्टेबुल को टैक्सी ले आने के लिये भेज दिया था। बड़ी देर से खड़ी हुई टैक्सी हार्न कर रही थी, पर उस समय वे अपने बिगड़े हुए मन से लड़ रहे थे। कांस्टेबुल ने आकर कहा, दारोगाजी, बड़ी देर से टैक्सी खड़ी है। आपने छड़ी उठाई, और थाने से बाहर हो गए। सड़क पर टैक्सी खड़ी थी। बैठ गए, कहा, बहूबाजार । ड्राइवर बहूबाजार चल दिया। जब जकरिया स्ट्रीट के बराबर टैक्सी पहुंची, तब आपको याद आई कि टोपी भूल गए। कहा, अरे ड्राइवर, भई पारा फिर थाने चलो। गाड़ी फिर थाने आई। आप अपने कमरे से टोपी लेकर फिर टैक्सी पर पहुँचे। टैक्सी बहूबाजार चली।
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