पृष्ठ:अप्सरा.djvu/२९

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अप्सरा

सय ___माटी हँसी हँसफर दारोगा ने कहा-"संकोच ? संकोच का तो यहाँ नाम नहीं और फिर तु-आ-आपके यहाँ । _____ कनक ने द्वारासाजो को पहचान लिया। उसने नौकर को अावाज दी। नीकर आया। उससे खाना लाने के लिये फहकर, आलमारी से, खुद उठकर एक रेडलेब्ल और दो बोतलें लेमोनेड की निकाली। शीशे के एक ग्लास में एक पेग शराब ढालते हुए फनक ने कहा- "आप मुझे तुम ही कहें। कितना मधुर शब्द है तुम ! 'तुम मिलाने- वाला है, 'आप' शिष्टता की तलवार से दो जुड़े हुओं को काटकर जुदा कर देनेवाला।" गरोसाजी बारा-बारा हो गए। बादल से काले मुंह की हँसी में साह दांतों की कतार बिजली की तरह चमक उठी। कनक ने बड़े जोर से सिर गड़ाकर हँसी रोकी। ____ थानेदार साहब को तरफ अपने जीवन का पहला ही कटाक्ष कर कनक ने देखा, तीर अचूक बैठा। पर उसके कलेजे में बिच्छू डंक मार रहे थे। कनक ने ग्लास में लेमानेड कुछ डालकर थानेदार साहब का दिया। उन्होंने हाँ-ना विना किए ही लेकर पी लिया। कनक ने दूमय पंग डाला । उसे भी पी गए। तीसरा ढाला, उसे भी पी लिया। तब तक नौकर खाना लेकर आ गया । कनक ने सहूलियत से मेज पर रखवा दिया। थानेदार साहब ने कहा-'अब मैं तुम्हें पिलाऊँ ? कनक ने मौहें चढ़ा ली। "आज शाम को नवाब साहब मुर्शिदाबाद के यहाँ मेरा माजरा है, माक कीजिएगा। किसी दूसरे दिन पाइएगा, तब पिऊगी। पर मैं शराब नहीं पीती, पोर्ट पीती हूँ! आप मेरे लिये एक लेने आइएगा। ____ थानेदार साहब ने कहा-"अच्छा, खाना तो साथ खानो।" कनक नेपा ऋड़ा उठाकर खा लिया। थानेदार भी खाने लगे। कनक ने कहा-"मैं नाश्ता कर चुकी हूँ माफ फर्माइएगा बस।" उसने वहीं,