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अप्सरा

जाना, उसके उस जीवन की स्वच्छ अबाध प्रगति का उचित परिणाम ही हुआ । उसकी माता शिक्षित तथा समझदार थी। इसीलिये उसने कन्या के सबसे प्रिय जीवनोन्मेष को बाहरी आवरण द्वारा ढक देता उसकी बाढ़ के साथ ही जीवन की प्रगति को भी रोक देना समझा था।

सोचते-सोचते कनक को याद आया, उसने साहब की जेब से एक चिट्ठी निकाली थी, फिर उसे अपनी फाइल में रख दिया था। वह तुरंत चलकर फाइल की तलाशी लेने लगी। चिट्ठी मिल गई।

साहब की जेब से यह राजकुमार की चिट्ठी निकाल लेना चाहती थी, पर हाथ एक दूसरी चिट्ठी लगी। उस समय घबराहट में वहीं उसने पढ़कर नहीं देखा । घर में खोला, तो काम की बातें न मिली। उसने चिट्ठी को फाइल में नत्थी कर दिया । उसने देखा था, युवक ने पेंसिल से पत्र लिखा है। पर यह स्याही से लिखा गया था। इसकी बातें भी उस सिलसिले से नहीं मिलती थीं। इस तरह, ऊपरी दृष्टि से देखकर ही, उसने चिट्ठी रख दी। आज निकालकर फिर पढ़ने लगी। एक बार, दो बार, तीन बार पढ़ा। बड़ी प्रसन्न हुई। यह वही हैमिल्टन साहब थे । वे हों, न हों, पर यह पत्र हैमिल्टन साहब ही के नाम लिखा था, उसके एक दूसरे अँगरेज मित्र मिस्टर चर्चिल ने । मजमून रिश्वत और अन्याय का, कनक की आँखें चमक उठीं।

इस कार्य की सहायता की बात सोचते ही उसे श्रीमती कैथिरिन की याद आई। अब कनक पढ़ती नहीं, इसीलिये श्रीमती कैथरिन का आना बंद है। कभी-कभी श्राकर मिल जाती, मकान में पढ़ने की किताबें पसंद कर जाया करती हैं। कैथरिन अब भी कनक को वैसे ही प्यार करती हैं । कभी-कभी पश्चिमी आर्ट, संगीत और नृत्य की शिक्षा के लिये साथ योरप चलने की चर्चा भी करती हैं। सर्वेश्वरी की उसे योरप मेजने की इच्छा थी। पर पहले वह अच्छी तरह उसे अपनी शिक्षा दे देना चाहती थी।

कनक ने ड्राइवर को मोटर लगाने के लिये कहा । कपड़े बदलकर चलने के लिये तैयार हो गई।