थी। हैमिल्टन ने मुझे पकड़ लिया, और मुझे जैसे अशिष्ट शब्द कहे,
मैं कह नहीं सकती। उसी समय एक युवक वहाँ पहुँच गया। उसने
मुझे बचाया । हैमिल्टन उससे बिगड़ गया, और उसे मारने के लिये
तैयार हो गया। दोनों में कुछ देर हाथापाई होती रही। उस युवक ने
हैमिल्टन को गिरा दिया, और कुछ जमाए, जिससे हैमिल्टन बेहोश
हो गया। तब उस युवक ने अपने रुमाल से हैमिल्टन का मुंह धो
दिया, और सिर में उसी की पट्टी लपेट दी। फिर उसने एक चिट्ठी
लिखी, और इनकी जेब में डाल दी। मुझसे जाने के लिये कहा। मैने
उससे पता पूछा । पर उसने नहीं बतलाया। वह हाईकोर्ट की राह
चला गया। अपने बचानेवाले का पता मालूम कर लेना मैंने अपना
फर्ज समझा । इसलिये वहीं फिर लौट गई। चिट्ठी निकालने के लिये
जेब में हाथ डाला। पर भ्रम से युवक की चिट्ठी की जगह यह चिट्री
मिली। एकाएक कोहनूर स्टेज पर मैं शकुंतला का अभिनय करने गई।
देखा, वही युवक दुष्यंत बना था। थोड़ी ही देर में दारोगा सुंदरसिंह
उसे गिरफ्तार करने गया, पर दर्शक बिगड़ गए थे। इसलिये अभिनय
समाप्त हो जाने पर गिरफ्तार किया। राजकुमार का कुसूर कुछ नहीं,
अगर है, तो सिर्फ यही कि उसने मुझे बचाया था।"
_अक्षर-अक्षर साहब पर चोट कर रहे थे। कनक ने कहा-"और
देखिए, यह हैमिल्टन के चरित्र का दूसरा पत्र।
___कनक ने दारोगा की जेब से निकाला हुआ दूसरा पत्र भी साहब को
दिखाया। इसमें हैमिल्टन के मित्र, सुपरिटेंडेंट मिस्टर मूर ने दारोगा
को बिला धजह राजकुमार को गिरफ्तार कर बदमाशी के सुबूत दिला-
कर सजा करा देने के लिये लिखा था। उसमें यह भी लिखा था कि
इस काम से तुम्हारे ऊपर हम और हैमिल्टन साहब बहुत खुश
होगे।
मैजिस्ट्रेट रॉबिंसन ने उस पत्र को भी ले लिया। पढ़कर दोनो की
तिथियाँ मिलाई। सोचा। कनक की बातें बिलकुल सच जान पड़ी।
रॉबिंसन कनकं से बहुत खुश हुए।
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