पृष्ठ:अप्सरा.djvu/४६

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अप्सरा


राजकुमार दो पार्ट कर रहा था, एक मन से, दूसरा जबान से । इसलिये कनक के मुकाबले वह कुछ उतरा हुआ समझा गया था। उसके सिर्फ दो-एक स्थल अच्छे हुए थे। आज फिर कनक को बैठी हुई देखकर उसने अनुमान लड़ाया कि शायद पुलिस की तरफ से यह भी एक गवाह या ऐसी ही कुछ होकर आई है। क्रोध और घृणा से ऊपर तक हृदय भर गया। उसने सोचा कि इडेन-गार्डेन में उससे गलती हो गई, मुमकिन है, यह साहब की प्रेमिका रही हो, और व्यर्थ ही साहब को उसने दंड दिया । राजकुमार के दिल की दीवार पर जो कुछ अस्पष्ट रेखा कनक की थी, बिलकुल मिट गई । “मनुष्य के लिये खो कितनी बड़ी समस्या है इसकी सोने सी देह के भीतर कितना तीव्र जहर !” राजकुमार सोच रहा था-"मैंने इतना बड़ा घाखा खाया, जिसका दंड ही से प्रायश्चित्त करना ठीक है।" राजकुमार को देखकर कनक के आँस्था गए । राजकुमार तथा दूसरों की आँखें बचा रूमाल से चुपचाप उसने आँसू पोंछ लिए। उस रोज लोगों की निगाह में कनक ही कमरे की रोशनी थी, उसे देखते हुए सभी की आँखें औरों की आँखों को धोखा दे रही थी। सबकी आँखों की चाल तिरछी हो रही थी। ___एक तरफ़ दारोगा साहब खड़े थे। चेहरा उतर रहा था। राजकुमार ने सोचा, शायद मुझे अकारण गिरफ्तार करने के खयाल से यह उदास है । राजकुमार बिलकुल निश्चित था। दारोगा साहब ने रविवार के दिन रॉबिंसन का जैसा. रुख देखा था, उस पर शहादत के लिये दौड़-धूप करना अनावश्यक सममा, उलटे वह अपने वरखास्त होने, सजा पाने और न जाने किस-किस तरह की कल्पनाएँ लड़ा रहे थे। इसी समय मैजिस्ट्रटेने दारोगा साहब को तलब किया। पर वहाँ कोई तैयारी थी ही नहीं। बड़े करुण भाव से, दृष्टि में कृपा चाहते हुए, दारोगा साहब मैजिस्ट्रेट को देखने लगे। ___ अभियुक्त को छोड़ देना ही मैजिस्ट्रेट का अभिप्राय था। इसलिये