_हमारे यहाँ भोजन करने में आपको कोई एतराज तो न होगा?" कनक ने पूछा। ___“कुछ नहीं, मैं तो प्रायः होटलों में खाया करता हूँ।" राजकुमार ने असंकुचित स्वर से कहा। ___ "क्या आप मांस भी खाते हैं ?" __"हाँ, मैं सक्रिय जीवन के समय मांस को एक उत्तम खाद्य पदार्थ मानता हूँ, इसलिये खाया करता हूँ।" ___ "इस वक्त तो आपके लिये बाजार से भोजन मँगवाती हूँ, शाम को मैं पकाऊँगी। कनक ने विश्वस्त स्वर से कहा। राजकुमार ने देखा, जैसे एक अज्ञात, अब तक अपरिचित शक्ति से उसका अंग-अंग कनक की ओर खिंचा जा रहा था, जैसे चुंबक की तरफ लोहे की सुइयाँ । केवल हृदय के केंद्र में द्रष्टा की तरह बैठा हुआ वह उस नवीन प्रगति से परिचित हो रहा था। ___ वहीं बैठी हुई थाली पर एक-एक खाद्य पदार्थ चुन-चुनकर कनक ने रक्खा। एक तश्तरी पर ढकनदार ग्लास में बंद वासित जल रख दिया । राजकुमार भोजन करने लगा। कनक वहीं एक बग़ल बैठी हुई पान लगाने लगी। भोजन हो जाने पर नौकर ने हाथ धुला दिए।
पान की रकाबी कनक ने बढ़ा दी । पान खाते हुए राजकुमार ने कहा- आपका शकुंतला का पार्ट उस रोज बहुत अच्छा हुआ था। हॉ, धोती तो अब सूख गई होगी ?" ____ "इसे ही पहने रहिए, जैसे अब आप ही शकुंतला हैं, निस्संदेह आपका पाट बहुत अच्छा हुआ था। आप कहें, तो मैं दुष्यंत का पार्ट करने के लिये तैयार हूँ।"
मुखर कनक को राजकुमार कोई उत्तर न दे सका। कनक एक दूसरे कमरे में चली गई। धुली हुई एक मर्दानी धोती ले आई।
“इसे पहनिए, वह मैली हो गई हैं। सहज आँखों से मुस्किरा- कर कहा।