मै अपनी तरफ से कोई कार्रवाई करूंगी, तो इसका उन पर बुर,
असर पड़ेगा।"
नौकर से जेवर का बक्स बढ़ा देने के लिये सर्वेश्वरी ने कहा।
आज कनक के लिये सबसे बड़ी परीक्षा का दिन है। आज की विजय उसकी सदा की विजय है। इस विचार से सर्वेश्वरी बड़े विचार से सोने और हीरे के अनेक प्रकार के आभरणों से उसे सजाने लगी। बालों में सुगंधित तेल लगा, किनारे से तिरछाई माँग काढ, चाटी गूंथकर चक्राकार जूड़ा बाँध दिया। हीरे की कनी-जड़े सोने के फूलबार कॉट जूड़े में पिरों दिए । कनक ने अच्छी तरह सिंदूर माँग में भर लिया। उसकी ललाई उस सिर का किसके द्वारा कलम किया जाना सूचित कर रही थी। उस रोज सर्वेश्वरी ने वसंती रंग की साड़ी पसंद की। अच्छे-अच्छे जितने बहुमूल्य आमरण थे, सबसे सर से पैर तक कनक को सजा दिया।
"अम्मा, मुझे तो यह सब भार हो रहा है। मैं चल नहीं सकूँगी।" सर्वेश्वरी ने कोई उत्तर नहीं दिया। कनक राजकुमार के कमरे की ओर चली। जीने पर चढ़ने के समय आमरणों की मंकार से राजकुमार का मन आकर्षित हो गया। अलंकारों की मंजीर ध्वनि धीरे-धीरे नजदीक होती गई। अनुमान से उसने कनक के आने का निश्चय कर लिया। अब के दरवाजे के पास आते ही कनक के पैर रुक गए। सींग संकोच से शिथिल पड़ गया। कृत्रिमता पर बड़ी लजित हुई। मन को खूब दृढ़ कर होंठ काटती-मुसकिराती, वायु को केशों की सुरमि से सुगंधित करती हुई धीरे-धीरे चलकर गट्टी के एक प्रांत में राजकुमार के बिलकुल नजदीक बैठ गई।
राजकुमार ने केवल एक नजर कनक को देख लिया। हृदय ने प्रशंसा की। मन ने एकटक यह छवि खींच ली। तत्काल प्रतिज्ञा के अदम्य झटके से हृदय की प्रतिमा शून्य में परमाणुओं की तरह विलीन हो गई। राजकुमार चुपचाप बैठा रहा । हृदय पर जैसे पत्थर रख दिया गया हो।