अप्सरा गाड़ी के पास आ गए । अर्दली ने दरवाजा खोल दिया। दोनो बैठ गए । मोटर चल दी। ___घर आ कनक ने राजकुमार को अपने पढ़नेवाले कमर में छोड़ दिया, श्राप माता के पास चली गई। नौकर ने बालमारियों की चाभी खोल दी। राजकुमार किताबें निकालकर देखने लगा। अँगरेजी साहित्य के बड़े-बड़े सब कवि. नाटककार और औपन्यासिक मिले। दूसरे देशों के बड़े-बड़े साहित्यिकों के अँगरेजी अनुवाद भी रक्खे थे। राजकुमार श्राग्रह-पूर्वक किताबों के नाम देखता रहा। ___ कनक माता के पास गई। सर्वेश्वरी ने सस्नेह कन्या को बैठा लिया। "कोई तकरार तो नहीं की ?" माता ने पूछा। "तकरार क्या, अम्मा, पर उड़ता हुआ स्वभाव है, यह पीजड़ेवाले नहीं हो सकते।" कनक ने लज्जा से रुकते हुए स्वर से कहा। कन्या के भविष्य-सुख की कल्याण-कल्पना से माता की आँखो में चिता की रेखा अंकित हो गई।" तुम्हें प्यार तो करते हैं न?" कनक का सौंदर्य-दीप्त मस्तक आप-ही-श्राप मुक गया। ___हाँ बड़े सहृदय हैं, पर दिल में एक भाग है, जिसे मैं बुझा नहीं सकती, और मेरे विचार से उस आग के बुझाने की कोशिश में मुझे अपनी मर्यादा से गिर जाना होगा. मैं ऐसा नहीं कर सकती, चाहती भी नहीं बल्कि देखती हूँ, मैं स्वभाव के कारण कभी-कभी उसमें हवा का काम कर जाती हूँ।" ___ इसीलिये तो मैंने तुम्हें पहले समझाया था, पर तुम्हें अब अपनी तरफ से कोई शिक्षा में दे नहीं सकती। ___आज अपना पकाया भोजन खिलाने का वादा किया है, अम्मा !" कनक उठकर खड़ी हो गई । कपड़े बदलकर नहाने के कमरे में चली गई। नौकर को तिमंजिलेवाले खाली कमरे में भोजन का कुल सामान तैयार रखने की आज्ञा दे दी। राजकुमार एक कुर्सी पर बैठा संवाद-पत्र पढ रहा था। हिंदी और