पृष्ठ:अप्सरा.djvu/७०

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अप्सरा "क्यों ?" "तबियत ।" "तबियत ?" "जाओ कनक ने छोड़ दिया। उसी जगह, तस्वीर की तरह खड़ी, आँसुओ की दृष्टि से, एकटक देखती रही। राजकुमार सीधे नीचे उतर आया। दरवाजे से कुछ ही दूर तीन-चार आदमी खड़े आपस में बतला रहे थे। "उस रोज गाना नहीं सुनाया।" दूसरे ने कहा-"उसके घर में कोई रहा होगा, इसलिये बहाना कर दिया कि तबियत अच्छी नहीं।" तीसरा बोला-"लो, यह एक जा रहे हैं।" "अजी यह वहाँ जायेंगे ? बेटा निकाल दिए गए ! देखो, सूरत क्या कहती है।" राजकुमार सुनता जा रहा था। एक बराल एक मोटर खड़ी थी। फुटपाथ पर ये चारो बतला रहे थे। घृणा से राजकुमार का अंग-अंग जल उठा। इन बातों से क्या उसके चरित्र पर कहीं संदेह करने की जगह रह गई ? इससे भी बड़ा प्रमाण और क्या होगा ? छिः । इतना पतन भी राजकुमार जैसा दृढ़-प्रतिज्ञ पुरुष कर सकता है ? उसे मालूम हुआ, किसी अंध कारागार से मुक्ति मिली, उसका उतनी देर के लिये रौरव-भोग था, समाप्त हो गया। वह सीधे कार्नवालिस स्ट्रीट की तरफ चला । चोर बागान, अपने डेरे पर पहुँच ससंकाच कपड़े उतार दिए, धोती बदल डाली। नए कपड़े लपेटकर नीचे एक बग़ल जमीन पर रख दिए। हाथ-पैर धो अपनी चारपाई पर लेट रहा । बिजली की बत्ती जल रही थी। __चंदन की याद आई । बिजली से खिंची हुईसी कनक वहाँ अपने प्रकाश में चमक उठी। राजकुमार जितनी ही नफरत, जितनी ही