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पृष्ठ:अप्सरा.djvu/७३

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अप्सरा ___ "मिठाई, नमकीन और कुछ फल तश्तरी में ले आना।” महरी चली गई। "हम लोग बड़ी विपत्ति में फंस गए हैं, रज्जू बाबू, अखबार में तुमने पढ़ा होगा।" "हाँ, अभी ही पढ़ा है। पर विशेष बातें कुछ समझ नहीं सका।" __"मुझे भी नहीं मालूम | छोटे बाबू ने तुम्हारे भैया को लिखा था कि वह वहाँ किसानों का संगठन कर रहे हैं। इसके बाद ही सुना, लखनऊ षड्यंत्र में गिरफ्तार हो गए।" युवती की आँखें भर आई। राजकुमार ने एक लंबी साँस ली। कुछ देर कमरा प्रार्थना मंदिर की तरह निस्तब्ध रहा। __"बात यह है कि राजकर्मचारी लोग बहुत जगह अकारण लांछन लगाकर दूसरे विभाग के कार्यकर्ताओं को भी पकड़ लिया करते हैं।" "अभी तो ऐसा ही जान पड़ता है।" ऐसी ही बात होगी बहूजी, और जो लोग छिपकर बागी हो जाते हैं, उन्हें चाग्री करने की जिम्मेदारी भी यहीं के अधिकारियों पर है। उनके साथ इनका कुछ ऐसा तीखा बर्ताव होत है, वे जैसी नीच निगाह से उन्हें देखते हैं, ये लोग बरदाश्त नहीं कर सकते, और उनकी मनुष्यता, जिस तरह भी संभव हुआ, इनके अधिकारों के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा कर बैठती है। ___ "मुमकिन है, ऐसा ही कुछ छोटे बाबू के साथ भी हुआ हो।" ____बहूजी, चलवे समय भैयाजी और कुछ भी तुमसे नहीं कह गए ?" तेज निगाह से राजकुमार ने युवती को देखकर कहा। "ना।" युवती सरल नेत्रों से इसका आशय पूछ रही थी। “यहाँ चंदन की किसी दूसरी तरह की चिट्टियाँ वो नहीं हैं ?" युवती घबराई हुई-"मुझे नहीं मालूम !" "उनकी विप्लवात्मक किताबें तो होंगी, अगर ले नहीं गए ?" "मैंने उनकी आलमारी नहीं देखी। युवती का कलेजा धक-धक करने लगा।