पृष्ठ:अप्सरा.djvu/७४

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अप्सरा "तअज्जुब क्या अगर कल पुलिस यहाँ सर्च करे ?" युवती त्रस्त चितवन से सहायता की प्रार्थना कर रही थी। "अच्छा हुआ तुम आ गए रज्जू बाबू, मुझे इन बातों से बड़ा डर लग ___“बहूजी !' राजकुमार ने चिंता की नजर से, कल्पना द्वारा दूर परि- णाम तक पहुँचकर, पुकारा। . ____ "क्या ? स्वर के तार में शंका थी। ___"ताली तो आलमारियों की होगी तुम्हारे पास ? चंदन की पुस्तकें और चिट्ठियाँ जितनी हों, सब एक बार देखना चाहता हूँ । युवती घबराई हुई उठकर द्वार की ओर चली । खोलकर तालियों का एक गुच्छा निकाला । राजकुमार के आगे-आगे जीने से नीचे उतरने लगी, पीछे राजकुमार अवश्यंभावी विपत्ति पर अनेक प्रकार की कल्पनाएँ करता हुआ नीचे एक बड़े से हाल के एक ओर एक कमरा था। यह चंदन का कमरा था। वह जब यहाँ रहता था, प्राय: इसी कमरे में बंद रहा करता था। ऐसा ही उसे पढ़ने का व्यसन था। कमरे में कई आलमारियाँ थीं । आलमारियों की अद्भुत किताबें राजकुमार की स्मृति में अपनी करुणा की कथाएँ कहती हुई सहानु- भूति की प्रतीक्षा में मौन वाक रही थीं । कायगार उन्हें असह्य हो रहा था। वे शीघ्र अपने प्रिय के पाणिग्रहण की आशा कर रही थीं। "बहूजी, गुच्छा मुझे दे दो। राजकुमार ने एक आलमारी खोली । एक, दो, तीन, चार, पाँच, छः, सात, आठ, किताबें निकालता हुआ, फटाफट फर्श पर फेंक रहा था। युवती यंत्र की तरह एक टेबिल के सहारे खड़ी अपलक दृष्टि से उन किताबों को देख रही थी। दूसरी, तीसरी, चौथी, पाँचवीं, छठी, कुल पालमारियों की राज- कुमार ने अच्छी तरह तलाशी ली। जमीन पर करीब-करीब डेढ़-दो सौ किताबों का ढेर लग गया। फ्रांस रूस, चीन अमेरिका भारत, इजिप्ट, गिलैंड सब देशों की,