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पृष्ठ:अप्सरा.djvu/७८

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श्रप्सरा में कोई नहीं है। अगर इस पर भी वे मकान की तलाशी लें, तां घबराना मत, और हरएक की पहले अच्छी तरह तलाशी ले लेना, रोज अच्छी तरह मकान देख लिया करना । अपनी तरफ से कोई सख्ती न करना । डरने की कोई बात नहीं।" "अच्छा हुजूर ।" "चलो" राजकुमार ने ड्राइवर से कहा-'सियालदह ।" गाड़ी चल दी, सोधे चौरंगी होकर आ रही थी। अब तक अँधेरा दूर हो गया था। ऊषा उगते हुए सूर्य के दूरप्रकाश से अरुण हो चली थी, जैसे भविष्य की क्रांति का काई पूर्व लक्षण हो । राजकुमार की चिंताग्रस्त असुप्त आँखें इसी तरह लाल हो रही थीं। बगल में अनवगुंठित बैठी हुई सुंदरी की आँखें भी, विषाद तथा अनिद्रा के भार से छलछलाई हुई, लाल हो रही थीं। गाड़ी सेंट्रल ऐवेन्यू पार कर अब बहूबाजार-स्टीट से गुजर रही थी। गर्मियों के दिन थे। सूर्य का कुछ-कुछ प्रकाश निकल चुका था। मोटर ठीक पूर्व जा रही थी। दोनो के मुख पर सुबह की किरणें पड़ रही थीं। दोनो के मुखों की क्लांति प्रकाश में प्रत्यक्ष हो रही थी। एकाएक राजकुमार की दृष्टि स्वतःप्ररित की तरह एक तिमंजिले, विशाल भवन की तरफ उठ गई। युवती भी आकर्षक मकान देखकर ताकने लगी-बरामदे पर कनक रेलिंग पकड़े हुए एक दृष्टि से मोटर की तरफ देख रही थी, उसकी भी अनिय सुंदर आँखों में ऊषा की लालिमा थी। उसने राजकुमार को पहचान लिया। दोनो की आँखें एक ही लक्ष्य में चुभ गई। कनक स्थिर खड़ी ताकती रही। राजकुमार ने आँखें मुका ली। उसे कल के लोगों की बातें याद आई-घृणा से साग जर्जर हो गया। “बहूजी, देखा। "हाँ, इस खूबसूरत लड़की को ?" "हाँ, यही ऐक्ट्स कनक है।" मोटर मकान पार कर गई । राजकुमार बैठा रहा। युवती ने फिरकर फिर देखा । कनक वैसी ही खड़ी वाक रही थी।