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पृष्ठ:अप्सरा.djvu/७९

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"अभी देख रही है। तुमको पहचान लिया शायद ।" राजकुमार कुछ न बोला। जब तक मोटर अदृश्य नहीं हो गई, कनक खड़ी हुई ताकती रही। (१२) दर्द पर एक चोट और लगी। कनक कलेजा थामकर रह गई। “वज की तरह ऐसे ही लोग कठोर हुश्रा करते हैं।" पहले जीवन में एकांत की कल्पना ने जिन शब्दों का हार गूंथा था, उसकी लड़ी में यति-भंग हो गया। तमाम रात प्रणय के देवता के चरणों में पड़ी रोकर भोर कर दिया। प्रातःकाल ही उनके सत्य-आसीस का कितना बड़ा प्रमाण! अब वह समय की सरिता सागर की ओर नहीं, सूखने की ओर बढ़ रही थी। जितना ही आँसुओं का प्रवाह बढ़ रहा था, हृदय उतना ही सूख रहा था। बरामदे से चलकर वह फिर पलँग पर पड़ रही। कलेजे पर सॉप लोट रहा था। ____कितना अपमान ! यह वही राजकुमार था, जिसने एक सच्चे वीर की तरह उसे बचाया था। छि:-छिः ! इसी शुढ़-प्रतिज्ञ मनुष्य की जबान थी-तुम मेरे शरीर की आत्मा हो! "तुम मेरी कल्पना की तसवीर हो, रूप की रेखा, डाल की कली, गले की माला, स्नेह की परी, जल की तरंग, रात की चाँदनी, दिन की छाँह हो!" यह उसी राजकुमार की प्रतिज्ञा है ! कनक ने उठकर बिजली का पंखा खोल दिया। पसीना सूख गया, हृदय की आँच और तेज हो गई । इच्छा हुई, राजकुमार को खूब भली-धुरी सुनावे-"तुम श्रादमी हो ?--एक बात कहकर फिर भूल जानेवाले तुम-तुम आदमी हो ? तुम होटलों में खानेवाले मेरे हाथ का पकाया भोजन नहीं खा सकते ?" ___ "यह कौन थी ? होगी कोई !-मुझसें जरूरत ? नः, इंधर गई है, पता लेना ही चाहिए, यह थी कौन १ मयना!". .