पृष्ठ:अप्सरा.djvu/९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
अप्सरा

सामने रेल दिया। एक पेड़ के सहारे साहब सँभल गया, फिरकर उसने देखा, एक युवक अकेला खड़ा है। साहब को अपनी वीरता का ख़याल आया। "टुम पीछे से हमको पकड़ा" कहते-कहते साहब युवक की ओर लपका। "तो अभी दिल की मुराद पूरी नहीं हुई?" युवक तैयार हो गया। साहब को बाक्सिंग (घूँसेबाजी) का अभिमान था, युवक को कुश्ती का। साहब के वार करते ही युवक ने कलाई पकड़ ली, और यहीं से बाँधकर बहल्ले में दे मारा, छाती पर चढ़ बैठा, कई रद्दे कस दिए। साहब बेहोश हो गया। युवती खड़ी सविस्मय ताकती रही। युवक ने रुमाल भिगोकर साहब का मुँह पोछ दिया। फिर उसी को सर पर रख दिया। जेब से काग़ज निकाल बेंच के सहारे एक चिट्ठी लिखी, और साहब की जेब में रख दी। फिर युवती से पूछा---"आपको कहाँ जाना है?"

"मेरी मोटर रास्ते पर खड़ी है। उस पर मेरा ड्राइवर और बूढ़ा अर्दली बैठा होगा। मैं हवाखोरी के लिये आई थी। आपने मेरी रक्षा की। मैं सदैव-सदैव आपकी कृतज्ञ रहूँगी।"

युवक ने सर झुका लिया। "आपका शुभ नाम? युवती ने पूछा। नाम बतलाना अनावश्यक समझता हूँ। आप जल्द यहाँ से चली जायँ।"

युवक को कृतज्ञता की सजल दृष्टि से देखती हुई युवती चल दी। रुककर कुछ कहना चाहा, पर कह न सकी। युवती फ़ील्ड के फाटक की ओर चली, युवक हाईकोर्ट की तरफ़ चला गया। कुछ दूर जाने के बाद युवती फिर लौटी। युवक नजर से बाहर हो गया था। वहीं गई, और साहब की जेब से चिट्ठी निकालकर चुपचाप चली आई।

( २ )

कनक धीरे-धीरे सोलहवें वर्ष के पहले चरण में आ पड़ी। अपार, अलौकिक सौंदर्य, एकांत में, कभी कभी अपनी मनोहर रागिनी सुना जाता; वह कान लगा उसके अमृत-स्वर को सुनती, पान किया करती। अज्ञात एक अपूर्व आनंद का प्रवाह अंगों को आपाद-मस्तक नहला