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पृष्ठ:अप्सरा.djvu/९५

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अप्सरा ___ कनक को आज तक व्यंग्य सुनने का मौका नहीं लगा था। यहाँ सुनकर चुपचाप सह लेने के सिवा दूसरा उपाय भी न था, और इतनी सहनशीलता भी उसमें न थी। कुँवर साहब जिस तीखी कामुक दृष्टि से एकटक देखते हुए इस मधुर आलाप का आनंद ले रहे थे, कनक के रो-रोएँ से घृणा का जहर निकल रहा था। मेरी मा अभी नहीं आई ?” कुचर साहब की तरफ मुखातिब होकर कनक ने पूछा। कुँवर साहब के कुछ कहने से पहले ही पारिषद-वर्ग बोल उठे- "अच्छा, अब मा की याद की जायगी।" सब अट्टहास हँसने लगे। कनक सहम गई, उसने निश्चय कर लिया कि अब यहाँ से निस्तार पाना मुश्किल है। याद आई, एक बार राजकुमार ने उसे बचाया था; वह राजकुमार आज भी है, पर उसने उस उपकार का उसे जो पुरस्कार दिया, उससे उसे नफरत है, इसलिये आज वह उसकी विपत्ति का सहायक नहीं, केवल दर्शक होगा। वह पहुँच से दूर, अकेला है । यहाँ वह पहले की तरह होता भी, तो उसकी रक्षा न कर सकता। कनक इसी तरह सोच रही थी कि कुवर साहब ने कहा, आपकी मा के लिये दूसरी जगह ठीक की गई है, यहाँ आप ही रहेंगी। ____ कनक के होश उड़ गए। रास्ता भूली हुई दृष्टि से चारो तरफ देख रही थी कि कुँवर साहब ने कहा-"यह मोटर है, आपको महफ़िल लगने पर ले जाने के लिये । आप किसी तरह घबराइए मत । यहाँ एकांत है। आपको श्राराम होगा। इसी ख्याल से आपको यहाँ लाया गया है। चारो तरफ से जल की हवा आ रही है। छोटी-छोटी नावें भी हैं। आप जब चाहें, जल-विहार कर सकती हैं। भोजन भी आपके लिये यहीं आ जायगा।". ____ "आपको कोई तकलीफ न होगी खुक-छुक-छुक-छुक- खो-ओ-ओ खो-ओं-"मुसाहबों का अट्टहास । ___मुझे महफिल जाने से पहले अपनी मा के पास जाना होगा। क्योंकि पेशवाज वगैरह उन्हीं के पास है।"