पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१५

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का सम्पादन श्री गोखले ने कर दिया है। मूल अभिधर्मकोश का सम्पादन श्री प्रह्लाद प्रधान जाय- सवाल शोध संस्थान की ओर से कर रहे है। इसका प्रकाशन बौद्ध दर्शन के इतिहास में महत्त्वपूर्ण घटना होगी। अभिधर्म का विषय अत्यन्त क्लिष्ट और अपनी निजी परिभाषाओं से भरा हुआ है। फ्रेंच भाषा से अनुवाद करने पर भी आचार्य जी ने स्फुटार्था व्याख्या एवं मूल कारिकाओं की सहायता से संस्कृत शब्दावली का बड़ा सटीक उद्धार किया है। आभिर्मिक दर्शन को समझने के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा परिनिष्ठित संस्कृत से विभिन्न अर्थों को प्रकट करने वाली शब्दावली है। जब आठों कोशस्थान मुद्रित हो जायंगे तब ग्रन्थान्त में इन परिभाषाओं का एक कोशात्मक संकलन देना समीचीन होगा। आचार्य श्री नरेन्द्रदेव जी अपने अस्वास्थ्य के कारण इस ग्रन्थ के घूफादि देखने और मुद्रण कराने का कार्य मुझे सौंप गये थे। खेद है कि १९ फरवरी १९५६ को उनकी ऐहलौकिक लीला समाप्त हो गई। अव यह अनुवाद उनके साहित्यिक कार्य के अमर कीर्तिस्तम्भ के रूप में प्रकाशित हो रहा है । वे जीवित होते तो अभिधर्म के गूढ मर्म का प्रतिपादन करने वाली विशद भूमिका इसके साथ जोड़ते । अपने बौद्ध-धर्म-दर्शन अन्य में उन्होंने वसुबन्धु के आभिर्मिक दर्शन पर (१५वा अध्याय) और उनके विज्ञानवादी दर्शन पर भी (१८ वा अध्याय) मासिक रूप से लिखा है। धातुनिर्देश नामक प्रथम कोशस्थान के विषय का विवेचन बौद्ध-धर्म-दर्शन के पृ० ३१४-३२१ तक आया है। दूसरे कोशस्थान के अन्तर्गत जो कई विषय हैं उनमें इन्द्रियों का विवे- चन पृ० ३२८-३३३, परमाणुवाद का पृ० ३२२-३२६, चित्त-चैत्त का पृ० ३३३-३४४, चित्त- विप्रयुक्तधर्मो का पृ० ३४४-३५४, और हेतु-फल-प्रत्ययतावाद का पृ० ३५४-३६७ पर हुआ है। लोकधातुसंज्ञक तीसरा कोशस्थान बौद्ध धर्म की विश्व-संस्थान-रचना (कास्मालाजी) से सम्बन्धित है। वसुबन्धु ने विस्तार से विभिन्न लोकों का वर्णन किया है। उसका संक्षिप्त परि- चय बोद्ध धर्म-दर्शन में पृ० ३६८-३६९ पर दिया गया है। यह विषय पाठकों को अनुवादक के उसी ग्रत्य से अवलोकन करना चाहिए। मारा विचार है कि सम्पूर्ण ग्रन्थ मुद्रित हो जाने के बाद फोश के विषयों का परिचय भूमिका रूप में निबद्ध किया जाय। तब तक सम्भव है मूल संस्कृत कोश भी मुद्रित रूप में उपलब्ध हो जाय। काशी विश्वविद्यालय ९-९-१९५८ वासुदेवशरण अग्रवाल १. बम्बई राजकीय प्राच्य पत्रिका (JBBRAS), भाग २२, १९४१ । इसी पत्रिका फै भाग २३ में श्री गोखले ने राहुल जी द्वारा लाए हुए मूल अभिधर्म समुच्चय का भी संपादन कर दिया है । वह प्रति खंडित थो, उसको पूर्ति श्री प्रह्लाद प्रधान न चीनी आषार पर कर फे उसे विश्वभारती से प्रकाशित किया है।